साहब, आँसू चीख रहें हैं
साहब, आँसू चीख रहें हैं
कोई तो आवाज़ सुनो
मर न जाये भूख तड़पकर
आसन वाले ताज सुने..
अन्तड़ियाँ हैं इन्तजार में
कब रोटी का स्वाद मिले
आँसू सूख गये पीड़ा में
फिर भी आँखें रांह तके
आँऊगा माँ रोटी लेकर,
बूढी माँ की फरियाद सुनो..
साहब, आँसू चीख रहें हैं
कोई तो आवाज़ सुनो...
भूख तड़पती देखी मैंने
ऐसा भी मंजर देखा
भूखा बच्चा पत्तल चाटें
ऐसा भी इक क्षण देखा
तड़प उठी यह देख ऱूह,
फिर और वेदना फुट पड़ी
भीग गये एहसास अचानक
इक बूंद नयन से छूट पड़ी
सपनों को अब पंख चाहिये
पहले, उनके मन की बात सुनो....
साहब, आँसू चीख रहें हैं
कोई तो आवाज़ सुनो....
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