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Thursday, April 4, 2024

पूर्वांचल एक्स्प्रेस

एसी कोच  से जनरल कोच  तक, जनरल  कोच से एसी  कोच  तक का सफर बताता है।  इस देश में कितनी विविधता है।  जनरल कोच में बैठ के अतीत को देख रहा था ६ सालो बाद। और सोच रहा था। उस दौर के बारे में जब कॉलेज में थे और कंप्टेटिव एग्जाम के सिलसिले में अक्सर शहर को जाना होता था। २०१५ से लेकर २०१८ तक जनरल कोच में। न जाने कितने अनगिनत  सफर तय किए याद नही है। उस समय जब लोगो को ट्रेन के जनरल कोच में देखता जाते हुए और खुद भी जाता था । तो सोचता था की कब निकलेंगे हम इससे बाहर। हमसे तो एक मिनट नही रहा जाता इसमें दम घुटने लगता है। मैं अक्सर एसी कोच  को देखकर सोचता था। वो कौन लोग है जो सीसे वाली बोगी में बैठते है। उस टाइम तक मुझे पता था की स्लीपर और ऐसी कोच अमीर पढ़े लिखे लोग० जाते है। इस लिए भी मुझे पढ़ना था ! कुछ बनना था तब। आज भी यही सोच रहा था कितनी विविधता है न एक ही ट्रेन के अंदर। सोचते हुए। कोच में एक नजर डाला तो देखा। फटी गंजी, हाफ पेंट, लुंगी में पसीनो से तरबतर, सुखी रोटी के साथ आचार खाते लोगो को ट्रेन के कोच के फ्लोर पर सोते हुए। कई लोगो के ऊपर पैर रख के लोग जा रहे है। भीड़ इतनी थी की दोनो पैर एक साथ रखने की जगह नही थी । और लोग ३ दिन की यात्रा करते आ रहे थे। फिर हमें सोचने लगे आखिरकार देश की हालत आज भी हम वही है। बुलेट ट्रेन, बंदेमात्रम, और हवाई यात्राएं करने वाले लोगो को क्या पता गरीबी कितनी पीड़ादायक होती हैं । और गरीब रहता कहा है। 
इस देश को गहराई से देखना है तो ट्रेन की जनरल  कोच को देखना चाहिए।  ताकि समझ आए हम विकाश कितना कर गए है। और कहा तक । गरीबों के लिए ५ किलो चावल पर। और अमीरो के लिए  बुलेट ट्रेन और बंदेमात्र्म ट्रेन जैसी सुविधाए पे ज्यादा जोड़ दिया जाता है। न की गरीबों के हालत पर।  खैर बोलने पर पाबंदियां है और लिखने पर लगाई जा रही । तो  लिखते वक्त भी बहुत सोचना पड़ता है। क्यों की लगता तो ऐसा ही है। कि अनुच्छेद 19 - बस कागजो मे ही लिखा है। 

Friday, September 29, 2023

अतीत जज़्बात आज और हम

मैं हर रोज देखता हूँ. सडक पर आते जाते 
शाम को किताबों को हाथ में
लिए लाइब्रेरी या कोचिंग से
वापस लौटते हुए लड़के लड़कियाँ को 
चेहरे पर उदासी
मन में हजारों सपने
जेब में कुछ फुटकर पैसे
घर की चिन्ता
भविष्य की अस्थिरता
और साथ हार जाने का डर  खो सा जाता हु।
दरअसल
जीत का जश्न और हारने के डर
के बीच की दूरी तय करते हुए लोगों को देखता हूं 
तो मैं अपने अतीत में खो जाता हु
अभी भी कसमकश दिमाग में चलने लगता हैं
कि। हम इस दौर से दूर आ गये हैं या इसी दौर में है।
उम्मीदें आज भी ताकती है । सपनो को सच होने के इन्तजार में। और हमें लगता है हम दुर निकल आये हैं
उस दौर से जिस दौड़ में हम उस छोर तक जाना चाहते थे। जहां जाना नामुमकिन सा है। हम दौड तो उस दौर से सुरु की थी। जब दौरन के लिए चपल ने थे। फिर भी शमिल हुए हम दौर में। क्यों कि दुर तक दौरना था मुझे। अनन्त तक । अब लगता है बहुत पीछे रह गए हम.।

Vinod kushwaha

पूर्वांचल एक्स्प्रेस

एसी कोच  से जनरल कोच  तक, जनरल  कोच से एसी  कोच  तक का सफर बताता है।  इस देश में कितनी विविधता है।  जनरल कोच में बैठ के अतीत को देख रहा था ६...