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Tuesday, December 29, 2020

Khamosiyo ko sun lo kuchh bat mai btau tumhe

Khamosiyo ko sun lo kuchh bat mai btau tumhe
Yu to badi achhi gungunate ho kuchh mai bhi gungunau tumhe
Her bar jub tumhe dekhta hu khud ko tumme dhundhta hu
 Mai kahi aata nhi najar  tumme
Fir kyo her jagah tum base ho musme
Jub kuchh pal n dekhu tumhe bechain sa ho jata hu 
idhar udhar charo taraf her jagah mai tumhe dhundhta rah jata hu
Khamosiyo ko sun lo kuchh bat mai btau tumhe
Tumhi btao tumse hi kaise dil ki bat sunau tumhe
Mai bat ko u ghumata hu tumpe hi tumhari bat sunata hu
Tum bujhte nhi ho bat mere her rat tumhe btata hu
Tumpe hi likhu mai  to tumko hi sunau mai
Her 

Thursday, December 17, 2020

तुम दिल में कब आ बसे मुझे पता न चला

हम मिले बेशक दो अजनबियों की तरह थे,
मगर तुम दिल में कब आ बसे मुझे पता न चला!

अपनी आँखों में राखी थी मैने इज्जत तुम्हारे लिए,
इसमें प्यार कब उमड़ आया मुझे पता न चला!

यूँ तो शराफत और सादगी लुभाती थी मुझको,
तेरी शरारतों पर कब फिसल गया पता न चला!

खुली जुल्फों से आती थी जो तुम्हारी भीनी-भीनी खुशबु,
जाने कब खामोश जंगल सी हुई मुझे पता न चला!

अधरों पर चमकती थी जो सूरज की लालिमा,
वो मदहोश लैब बेसुध क्यों हुए मुझे पता न चला!

तेरी उदासियां तेरी बेचैनीया तेरी परेशानियों
कब पता चला  ये मुझे पता ही न चला 

वजह चाहे जो हो तेरे इस घुट-घुट के जीने की,
मेरे खुश होने की वजह अब तुम हो शायद तुम्हें ये पता न चला!!

ढुंढ लो मुझमें खुद को

मुझको सताने को कोई वजह ढूंढ लो,
नहीं है तो बेवजह की कोई वजह ढूंढ लो,

रूठना मनाना यहीं तो है रिश्ता निभाना,
पास रहने का कोई तो वजह ढूंढ लो,

उदासी से अच्छा है गुस्सा तेरा,
मुझपे बरसने मेरी कोई खता ढूंढ लो,

जो तू कहे तो मान लूं मैं हूँ मुजरिम तेरा,
देने कोई अच्छी सी सजा ढूंढ लो,

जो तू कहे तो बन जाऊं मैं मसखरा,
मुस्कुराने की न हो कोई वजह तो ये वजह ढूंढ लो,

बनके कोई न कोई वजह संग हूँ मैं तेरे सदा,
कोई मुझसा न मिलेगा यहाँ चाहो तो सारा जहाँ ढूंढ लो।

Monday, November 30, 2020

क्या देखते हो इतनी शिद्दत से

क्या देखते हो इतनी शिद्दत से, आसमां में तुम?
तारे तोड़ कर लाओगे?.
अरे बीमार हो; परवरदिगार से सेहत मांगों,
वरना, देखते ही रह जाओगे।

क्यों हो इतने क्लेशित,उद्वेलित,आक्रोशित तुम?
आसमां सिर पर उठाओगे ?
उठो ,लड़ो, दो मात इस अभिशप्त बीमारी को,
वरना,कुछ भी नहीं कर पाओगे।

क्यों आकुल हो, राह की रुकावट को देख के तुम ?
मामूली कंकड़ है ,कोई अडिग पहाड़ नहीं।
बहुत जान बाकी बची है अभी तुम में,
क्या हुआ जो हुंकार में अब शेर की दहाड़ नहीं।

Tuesday, November 17, 2020

जिंदगी की राह

जिंदगी की राह पर
शूल की चिंता
अभी कहाँ छूटी है
बूढ़े बरगद की उस छाँव में
जहाँ मातम की हवा
सरसराते पत्तों को छेदकर
मेरी खिड़की से आ टकराती है.

अभी जीवन के सपने
टूटे तारों में कहीं अटके हैं
और वसंत की पंखुड़ियों ने
नदी के पुल से झांककर
लहरों में अपना चेहरा कहाँ ढूंढा है
अभी-अभी के छलावे ने
उलझा दिये हैं सारे गणित.

अभी शेष का अंतिम प्रहर
नहीं उतर सका है जीवन में
मिट्टी के खिलौनों से
मुन्ना कहाँ खेल पाया है ठीक तरह
और तुम कहते हो
छेद हो गया है मेरे वसंत में.
     Vinod kushwaha

Sunday, November 15, 2020

अपना हिस्सा

अपना हिस्सा

अपने हिस्से में लोग
हिस्सा का गणित करते हैं
और जहां नहीं जाना चाहिए
तय नहीं करना चाहिए
उन वर्जित क्षेत्रों में
वे घुस जाते हैं
और बना लेते हैं
अपने लिए पूरा हिसाब.

वे जो
गंदे से बीनते है कचड़े
और वे जो
धूल उड़ाते हैं मारुती से
अपने हिस्से का धूप
रख लेते हैं अपने पास
फर्क की चादर में
पहला काला-कलूटा होकर
ताकता है
अपने हिस्से के आकाश को
दूसरा उड़ाता है गुब्बारा
सेंकते है सागर किनारे
अपने नर्म नाजुक देह को.

अभी हिसाब के खाते में
चंद्रमा नहीं आया है
ना ही सूरज
पेड़ तो नीलाम हो चुके हैं
और नदी
कसमसाती रहती है दिन-रात
अपने जंजीरों से खुलने के लिए.

अभी रोटी की बात
कुछ देर टल गई है
बात हो रही है मंगल की
और वे
अपने हिस्से का मंगल चाहते हैं
जहां सूखी रोटी की जगह
कॉकटेल पार्टी की हुड़दंग हो.

समय की घड़ी
अभी बूढ़ी नहीं हुई है
बूढ़ा गए हैं हम
जिसे अपने हिस्से का
न धूप
न पानी
न रोटी
ना ही फुटपाथ मिल पाता है.

Saturday, November 14, 2020

मैं लौटूंगा जरूर एक दिन

मैं लौटूंगा जरूर एक दिन
नदी के तट पर बसे अपने गांव में.
हो सकता है मैं आदमी न रहूँ
तब मेरे गांव की नदी मुझमे उतर जाए
और संभव है मैं आदमी में लौट आऊँ.

हो सकता है
कुहासे की किसी सुबह
उठती लहर के जल से
मैं तिक्त होकर
सफेद बगुले सा
उड़ता हुआ आ पहुँचूँ
अपने पीपल की छाँव में.       💗Vinod Kushwaha
और हो सकता है
चुपचाप अंधकार में
डायन की हाथ की तरह
कोई भुतहा पेड़
रोक दे मेरे पावं को
जो जाना चाहते हैं
गांव की रसमयी पगडंडी को.
पर जरुरी है
मेरे लिए लौटना अपने गांव.

चमकती दुनिया के
इस बांस चढ़े शहर में
कम नहीं हैं डायनों की चीखें
कम नहीं है भूतहों से घिरा सन्नाटा
एक-एक ईंट मेरे अंदर धंसकर
न जाने कहां खो गया है
और मानवीयता की मोटी रस्सी
मेरे मन के बेडरूम से गायब हो गई है.

मुझे दिखता है
छप्पर की छाती चूमकर उठता धुआं
पक्षी लौटते संध्या की हवाओं को चूमते
कलमी के गंध से भरे जल में तैरते बत्तखें
घाट पर जाती इठलाती बधुएं
आम की छाँह में सुस्ताते चरवाहें
खेतों के गड्ढों में लोटते बच्चें
और आँगन में रंभाती गायें.

मुझे लौटना होगा
उन हवाओं में
उन बोलियों में
उन धड़कनों में.              💗👉 Vinod kushwaha
उन बालियों में
उन थिरकनों में
उन विचारों में
जहां मानव बसते हैं. उन गांवों में  

Wednesday, October 28, 2020

Meri Halat Nhi Badal Rhe


Ab to ye mausam bhi badal rha hai 
Lekin Meri halat nhi badal rhe
Kash October jatey jatey muspe raham kar jaye
Mere dard ko apne sath Le jay
Aane wale November me hum khusiya manaye
Diwali pe 2 khusi ke do Dip jalaye
Gum aur andhero ko Hum dur bhagaye 
Jindgi me roshni laye, dard ko hum bhul jaye
Sochta hu ab to itne din Ho gye hum aise kyo ji rhe
Dekho na ab to mausam bhi badal rha hai
Mere halat nhi badal rhe 
Ab to bistar bhi mujhe chidata hai. 
Aise hi Padey kyo rhta hai. khi ghum kyo nhi aata hai. Na hasta hai Na bolta hai u khoya khoya sa rahata hai,
Kya kahu Aaj kal dil bus yehi sochta hai
Ab to ye mausam bhi badal rha hai, 
Mere halat kyo nhi badal rha hai

Thursday, October 8, 2020

ए उदासियों आओ

ए उदासियों आओ

इस मोहल्ले में जश्न मनाओ
कि यहाँ ऐतराज़ की दुकानों पर ताला पड़ा है
सोहर गाने का मौसम बहुत उम्दा है


रुके ठहरे सिमटे लम्हों से गले मिलो
हो सके तो मुस्कुराओ
एक दूजे को देखकर
यहाँ अदब का नया शहर बसा है
सिर्फ तुम्हारे लिये

रूमानी होने का मतलब
सिर्फ वही नहीं होता
तुम भी हो सकती हो रूमानी
अपने दायरों में
इक दूजे की आँख में झाँककर
सिर्फ इश्क की रुमानियत ही रुमानियत नहीं हुआ करती
उदासियों की रुमानियतों का इश्क सरेआम नहीं हुआ करता

चढ़ाये होंगे इश्क की दरगाह पर
सबने ख्वाबों के गुलाब
जिनकी कोई उम्र ही नहीं होती
मगर
उदासियों की सेज पर चढ़े गुलाब
किसी उम्र में नहीं मुरझाते

ये किश्तों में कटने के शऊर हैं
हो इरादा तो एक बार आजमा लेना खुद को
उदासियाँ पनाह दे भी देंगी और ले भी लेंगी
कि उदासियों से इश्क करने की कसम खाई है इस बार...

Friday, September 25, 2020

तेरे जाने के बाद

चांदनी रात ना आई तब से
रात है पांव जमाई तब से
इक हंसी को भी तरसे हैं हम
तेरे जाने के बाद
चलते तो रहे पर पहुंचे ना कहीं
सांस रुक-रुक के यूंही चलती रही
ज़िन्दगी थम सी गई है तब से
तेरे जाने के बाद
कुछ हम तनहा कुछ तुम तनहा
लबों पे लफ्ज़ ना आया तब से
तेरे जाने के बाद
कहें तो किससे कहें हम अपने दिल की सदा
सभी ग़मगीन बैठें है यहां
तेरे जाने के बाद
कभी आंखों को बंद करके
ग़म-ए-दिल की भी सुनता हूं
मेरे आंसू भी रूठे हैं मुझसे
तेरे जाने के बाद
जिए जाता हूँ इस धुन में
कभी तू लौट के आए
उम्मीदें भी जुड़ा मुझसे तेरे जाने के बाद

Sunday, September 20, 2020

मन का एक कोना है और मैं हूँ

मन का एक कोना है और मैं हूँ

नहीं चाहता बताना
नहीं चाहता समझाना
कि इस दौर में
आखिर इतना उलझा हुआ
क्यूँ हूँ
बस मन का एक कोना है
और मैं हूँ
ये जो संगीत की लहरें
गुजर रही हैं
कानों से मन के भीतर
साथ हैं मेरे फिर भी तन्हा सा
क्यूँ हूँ
बस मन का एक कोना है
और मैं हूँ
यूं लिखते-लिखते
पढ़ते-पढ़ते
सब समझते-बूझते
आखिर ना-समझ इतना
बनता क्यूँ हूँ
बस मन का एक कोना है
और मैं हूँ
दिखते हैं सब अपने
लेकिन पराए ही हैं
बेमतलब के रिश्तों में
फँसता ही क्यूँ हूँ
बस मन का एक कोना है
और मैं हूँ

पूर्वांचल एक्स्प्रेस

एसी कोच  से जनरल कोच  तक, जनरल  कोच से एसी  कोच  तक का सफर बताता है।  इस देश में कितनी विविधता है।  जनरल कोच में बैठ के अतीत को देख रहा था ६...