Showing posts with label Thaughts. Show all posts
Showing posts with label Thaughts. Show all posts

Sunday, January 23, 2022

गैस के गुब्बार जैसे लोग

तुसी तुछी से लोग जब साहब कहलाने लगते हैं।
तो गैस की गुब्बारों की तरह फुल के हवा में 
उड़ने लगते हैं। जिसका कोई वाजुद नहीं होता
न उरने के काबिल होते है वो तो गैस ने हिम्मत
दी होती हैं कुछ पल के लिए तो लोग अपनी
औकात भुल बैठे हैं। इन लोगों की औकात 
कुछ नहीं होती है थोड़ा सा बस चांस मिल जाता है नसिब साथ दे देता है या कहीं से जुगाड हों जाता हैं। 
कुर्सी पर बस बैठ गये किसी ने बस साहब जो बोल 
दिया बस फुले ने समायेनग  फुल जायेंगे गुब्बारों की तरह चलेंगे या बात करेंगे तो लगेगा दुनिया इनके
गुलाम हो गयी है।  लेकिन इसकी हकीकत 
यही रहती हैं। कि  ललुलाल थे ललुलाल हैं।
बस अब ललुलाल चमनलाल के साथ न रह कर दो समझदार लोगों के साथ ४ क़दम चल दिया है।
और थोड़ा कहीं से लक्ष्मी की प्राप्ति हो गयी है।
बस यही बदलाव आ गया है ललुलाल में 
इस लिये ये फुल के गैस के गुब्बार की तरह 
आसमां के तरफ मुंह उठाकर चल रहा हैं। 
लललववललुलाल😦

Sunday, June 7, 2020

Childhood Golden Memories and Indoor and Outdoor Games

बचपन की सुनहरी यादें और बचपन के खेल 

मनुष्य जीवन का सबसे सुनहरा पल बचपन है, जिसे पुनः जी लेने की लालसा हर किसी के मन में हमेशा बनी रहती है. परंतु जीवन का कोई बीता पहर लौटकर पुनः वापस कभी नहीं आता, रह जाती है तो बस यादें जिसे याद करके सुकून महसूस किया जा सकता है.
अगर आज हम अपना बचपन याद करें तो केवल सुनहरी यादें ही याद आती है, ना किसी से बैर, न किसी से द्वेष, ना समय की फिक्र ना किसी चीज की चिंता, केवल हसना, खेलना, खाना-पीना, स्कूल और कुछ गिने चुने दोस्तों में जिंदगी सिमटी हुई सी बेहद ही खूबसूरत सी थी.
Childhood memories
जब हम छोटे थे अक्सर मन में ये खयाल आता था कि हम बड़े कब होंगे, पर आज पुनः उसी बचपन में लौट जाने का दिल करता है. तो चलिये आज हम आपको अपने इस आर्टिकल के द्वारा पुनः बचपन की यादों में लिए चलते है.
  1. बचपन में लोरी – आपको तो याद भी नहीं होगा जब आप चंद कुछ महीनों के होंगे तब शायद आप भी अन्य बच्चों की तरह आआ…. की आवाज करते सो जाते होंगे. उसके बाद आपको अपनी माँ या घर के किसी अन्य सदस्य के मुंह से लोरी सुनकर सोने की आदत हो गई होगी. मुझे लगता है कि अधिकतर भारतीय बच्चों द्वारा बचपन में सुनी गई पहली लोरी “चंदा मामा दूर के” ही होगी. जरा सोचिए कितना सुनहरा होगा वो समय जब आपको किसी चीज की समझ ना होते हुए भी आप लोरी में आने वाली उस आवाज से सो जाते होंगे.
  2. दादी नानी की कहानियाँ – आज के समय में ये चीज कम ही देखने मिलती है, समय की व्यस्तता के चलते ना दादी नानी बच्चों को कहानियाँ सुना पाती है, और ना ही टीवी और मोबाइल के बढ़ते प्रचलन के कारण बच्चे उसमें इंटरेस्ट ले पाते है. हम ये भी कह सकते है कि आज के इस डिजिटल युग में दादी-नानी की जगह मोबाइल ने लेली है.
  3. बचपन के खेल – स्कूल से आकर सबका ध्यान एक ही चीज में होता था, कि आज क्या खेल खेला जाएगा, कहीं पढ़ाई के लिए मम्मी जल्दी घर वापस ना बुला ले. बचपन में खेले जाने जाने वाले खेल कुछ इस प्रकार होते थे –
  • छुपन-छुपाई – यह बचपन में खेला जाने वाला सबसे आसान और मजेदार खेल था. इसमे एक साथी दाम देता था और अन्य सब छुप जाते थे, फिर कुछ देर रुककर वह अपने अन्य साथियों को ढूंढता और जो सबसे पहले आउट होता वही अगला दाम देता था. बचपन के इस खेल में कब स्कूल से लौटने के बाद खेलते हुए अंधेरा हो जाता था कुछ पता ही नहीं चलता था. बचपन का यह खेल वाकई में मनोरंजक था.
chupam chipai
  • नदी पहाड़ – नदी पहाड़ यह खेल भी अजीब था, जिसमें थोड़ी ऊंचाई वाले हिस्से पहाड़ और निचले हिस्से नदी के होते थे. जो बच्चा दाम देता था वह नदी में होता था और अन्य सभी पहाड़ पर, और जो नदी में होता था उसे पहाड़ पर मौजूद बच्चों को नदी में आने पर छूकर आउट करना होता था. बचपन में कॉलोनी की सड़कों पर यह नदी पहाड़ की उधेड्बुन भी अजीब सी खुशी दे जाती थी.
  • पिट्ठू – निमोर्चा जिसे कुछ लोग सितोलिया या पित्तुक के नाम से भी जानते है, बचपन में मेरा पसंदीदा खेल था. इस खेल को दो टीमों में विभाजित होकर खेला जाता था. इसमें कुछ पत्थर के टुकड़ों को एक के ऊपर एक रखा जाता था और जहां एक टीम का खिलाड़ी इन पत्थर के टुकड़ों को गेंद की मदद से कुछ दूरी पर खड़े होकर गिराता था, और फिर उसकी टीम उन पत्थर के टुकड़ों को पुनः सामने वाली टीम की गेंद से आउट होने से बचते हुए जमाती थी. अगर टीम यह पत्थर पुनः जमाने में कामयाब होती थी तो उसे एक पॉइंट मिल जाता था वरना यह पॉइंट सामने वाली टीम को मिलता था. और बचपन में इन्हीं पत्थरों को गिराने जमाने में शाम कब बीत जाती थी कुछ पता ही नहीं चलता था.

  • गिल्ली डंडा – बचपन का ये खेल भी बहुत ही अनूठा था इसे खेलने में समय कब निकल जाता और मम्मी कब आवाज लगाने लगती कुछ याद ही नहीं रहता था.

  • पतंग – उन रंग बिरंगी डोरियों में उड़ती रंग बिरंगी पतंगों से आसमान भी खूबसूरत सा लगने लग जाता था. वो अपनी पतंग को दूर आसमान में सबसे ऊपर पहुंचाने की चाह और इसके कटने पर दूर तक दौड़ लगाना भी अजीब था. अब आज जब थोड़ी दूर चलने पर सांस फूलने लगती है तब बचपन की वो पतंग के पीछे की लंबी दौड़ पुनः याद आने लगती है, जो चंद रुपयों की पतंग के लिए बिना थके लगाई जाती थी.
kite

गर्मी की छुट्टी में खेले जाने वालें खेल (Summers Time Games) –
स्कूल के समय जहां केवल शाम के कुछ घंटे खेलने के लिए मिलते थे वहीं गर्मी की छुट्टियों में पूरा दिन खेल के लिए ही होता था. पर गर्मियों की धूप के कारण घर से बाहर जाकर खुले में खेलने की भी मनाही थी, इसलिए गर्मियों के खेल भी कुछ अलग थे.
गर्मियों में खेले जाने वाले खेल इस प्रकार है –



  • केरम – गर्मी की छुट्टी आई नहीं की घर में केरम बाहर निकल आते थे. और इसे खेलते हुए कब दोपहर निकल जाती थी, पता ही नहीं चलता था.
Carom
  • राजा मंत्री चोर सिपाही – घर में चार चिटों पर बनाया हुआ यह खेल घंटों चलता था. इस चार चिट पर राजा, मंत्री चोर और सिपाही लिखा जाता था. और चार अलग – अलग व्यक्तियों को यह चिट उठानी होती थी, इसमें जिसके पास राजा की चिट होती वह कहता मेरा मंत्री कौन. अब मंत्री बने व्यक्ति को चोर और सिपाही का पता लगाना होता था. अगर वह सही चोर और सिपाही बता देता तो उसे मंत्री के 500 अंक मिल जाते वरना उसकी चिट चोर की 0 वाली चिट से बदल दी जाती. और राजा व सिपाही को 1000 व 250 अंक मिलते. इस प्रकार फिर अंत में टोटल कर खेल का विजेता घोषित किया जाता था.
Raja Mantri Chor Sipahi
  • ताश – ताश के उन 52 पत्तों से सत्ती सेंटर, चार सौ बीस, तीन दो पाँच और सात-आठ जैसे खेल खेलते हुए कब समय निकल जाता कुछ पता ही नहीं चलता. आज भी जब किसी सफर में ताश खेले जाते है तो बचपन की यादें ताजा हो उठती है.
  • क्रिकेट – बचपन में गर्मियों की सुबह में जल्दी उठना और सब दोस्तों को इकठ्ठा कर उजाला होने से पहले ही मैदान में पहुँच जाना भी अनूठा ही था. जहां परीक्षा के दिनों में पढ़ने के लिए आंखे खोलें नहीं खुलती थी वही क्रिकेट के लिए बिना किसी के उठाए ही उठना भी अजीब था.

  • लट्टू : भँवरा घुमाना और उसके लिए घंटो उस पर रस्सी को लपेटना. साथी का घूम जाए और हमारा नहीं, तो दिल में गुस्सा आता था, वो शाम को घर पर निकलता था. दिन रात प्रेक्टिस करके अगले दिन लट्टू घुमाकर दिखाए बिना चैन नहीं आता था.
latoo game
  • कंचे : कंचे खेलने से ज्यादा उसे जितने में मजा आता था, गिनते वक्त जितने ज्यादा कंचे हाथ में आते उतना दिल खुश हो उठता और जितने कम उतना ही उदास.
kanche

  • घोड़ा बादाम छाई : जहाँ स्कूल की रिसेस होती और सब दौड़ कर मैदान में अपनी अपनी क्लास के बच्चो के साथ जगह बनाते और इस खेल को खेलते. जिसमे जोर जोर से चिल्लाते “घोड़ा बादाम छाई पीछे देखी मार खाई.”
ghoda

  • खो- खो : इसे तो सभी बहुत ध्यान से खेलते थे, क्यूंकि ये कॉम्पिटिशन में आने वाला खेल जो होता था. साल के शुरू में ही हर क्लास की टीम तैयार की जाती थी, जिसमे सभी बहुत मेहनत करते थे.
2c86436cb0997f9619be56b8bc55_grande


  • गुलेल : निशाने बाजी का शौक बहुत भारी पड़ता था, पडौसी के घर के शीशे टूट जाते और वो घर लड़ने आ जाता था. फिर भी छिपते छिपाते गुलेल ले कर घर से भाग ही लेते थे.Gulel
  • सांप- सीढी / लूडो :यह एक ऐसे खेल जिन्हें हम अक्सर अपने माँ, पापा या भाई बहन के साथ खेलते. जब दिन भर के बाद पापा घर आते तो हम जिद्द करते. थके होने के बाद भी पापा बच्चो की मुस्कान देख पिघल जाते और खेलने लगते. कभी कभी तो जान बुझकर हार भी जाते. और आज बच्चे पापा के आते ही बस उनका मोबाइल ले लेते हैं और सर उठाकर अपने पापा से बाते भी नहीं करते.
Ludo Game
snakes ladders

बचपन वाकई में सुहाना था, काश की वो बचपन फिर लौट आए और हमारी जिन्दगी पुनः सभी टेंशन से मुक्त सुहानी हो जाए

Saturday, May 16, 2020

छोटा सा बच्चा ,वो भूखा बहुत है।

छोटा सा बच्चा ,वो भूखा बहुत है।


छोटा सा बच्चा ,वो भूखा बहुत है।
सोचा है उसने कि तितली सा उड़ ले।
किताबों को पकड़े,' सुंदर ' गुड़िया से खेले।।
हुकूमत ने उसके ही ' पर ' क्यों काटे बहुत हैं।
छोटा सा बच्चा ,वो भूखा बहुत है।।

घर पे उन ' दरख़्तों ' की छाया नहीं है।
' छोटी ' ने कल से 'कुछ भी' खाया नहीं है।।
' गरीबों ' की लाइन यहां लंबी बहुत है।
छोटा सा बच्चा ,वो भूखा बहुत है।।

पापा सुबह से कमाने गए हैं।
रईसों के घर को ' बनाने ' गए हैं।।
पापा हैं बूढ़े ,वो थकते बहुत हैं।
छोटा सा बच्चा ,वो भूखा बहुत है।।

मम्मी ने फ़िर से ना खाना बनाया।
बनाती भी कैसे? वो तपती रहीं हैं।।
दवाएं है ' सस्ती ' पर महंगी बहुत हैं।
छोटा सा बच्चा ,वो भूखा बहुत है।।

गन्दी जगह को ' लोग ' घेरे खड़े हैं ।
गाड़ी से दबके पापा कुचले पड़े हैं।।
उस ' आदमी ' को ' अब भी 'जल्दी बहुत है।
छोटा सा बच्चा ,वो भूखा बहुत है।

सुनके ये सब वो ' रोता ' बहुत है।
छोटा सा बच्चा ,वो भूखा बहुत है।।

Friday, May 8, 2020

Mumbai accident

भुख दर्द थकान इन्सान को श्मसान में भी सोने पे मजबूर कर देता है
फिर उन्होंने क्या गुनाह कर दिया जो रेल के पटरियों पर सो गए

जिन्दगी और किस्मत

उस दिन से पानियों की तरह बह रहे हैं हम
जिस दिन से पत्थरों का इरादा समझ लिया
- सईद अहमद

ज़िंदगी इक नई राह पर
बे-इरादा ही चलने लगी
- असर अकबराबादी

जिन के मज़बूत इरादे बने पहचान उन की
मंज़िलें आप ही हो जाती हैं आसान उन की
- अलीना इतरत


था इरादा तिरी फ़रियाद करें हाकिम से
वो भी एे शोख़ तिरा चाहने वाला निकला
- नज़ीर अकबराबादी

आज फिर मुझ से कहा दरिया ने
क्या इरादा है बहा ले जाऊँ
- मोहम्मद अल्वी

आसमाँ अपने इरादों में मगन है लेकिन
आदमी अपने ख़यालात लिए फिरता है
- अनवर मसूद

एक मजदूर दो वक़्त की रोटी

एक मजदूर दो वक़्त की रोटी कमाने के लिये,
किसी चौराहे पर खड़ा सोचता है,
कि काश कुछ काम मिल जाये,


"'"""""""""""""""""'''''''''''''
माँ का ख्याल जब आता है,
तन से पसीना छूट जाता है,
रोटी के बिन जिस भूखी माँ ने,
दूध पिलाया अब वह बूढ़ी हो चली,

Thursday, May 7, 2020

Immunity Corona aur Hum

Viruses ho ya koi Bhi parasite o apne Host ko marna nhi chahata, ye Corona bhi waise hi hai, ye to Rahana chahata hai, Hamare body, Hamare sath. viruses bacteria fungus ya kisi bhi  parasite se desth hoti hai Host ki o accidentally hoti hai,  hum bin o adhura hai. o nhi chahata Hume kuchh ho o Hume marna nhi chahata. Lekin hamari immunuty ko ye pasand nhi ki koi hamare Ghar me hamare  area me AA ke rahe. Is liye o fighting karne lgta hai parasite se. Virus se, Kabhi harta hai to kabhi harata hai. Harta to nhi hai. Humesha harata hi hai agar HIV ke cases me chhod de to her bar jitta hai, Lekin kabhi kabhi fighting itni dengur ho jati hai, itne khun kharabey hone lgte hai, jisse immunity  pagal jaisa behave karne lagti hai.  Aur self cells ko hi target karne lgti hai. Hamari immunuty kisi bhi parasite ko rahane nhi deti. Bhaga ke hi dam leti hai, ha kuchh ko rahane deti hai aagar unko lagta hai ki Banda Kam ka chij hai. Nukasan nhi hai kuchh. Jub bhi  Host ki death hoti hai to. viruses parasite sub rote hai, ki Mai anath ho gya, asal me o anjan hotey hai ki hamari wajah se hum jha rah rahe hai waha nuksan hai. But o Kare bhi Kya unko bhi apni Life badani hai family planning hai. Kahi na kahi is pura to karenge hi, isi khwaesh me o dar badar bhatakte huwe o apna thikana dhundhte hai. aaj Kal anjan logo ko koi thikana deta hi kha hai. Hamre sath hamari immunity bhi yahi Karti hai. Usko PTA hota hai ki Kya pta ye hamare sahab ko liye nuksan Kar de immunuty Hume sahab bolti hai o hamari police hai hamari army hai. Hum unke sahab Hai, dikhne wale dusmano se ladne ke liye hamari force hai.army hai bsf cisf hai, Waise hi hamari body me bhi hai,  T cell hai, B cell, phagocytes hai.lymphocyte hai, neutrophils hai, ye  bhi hame hamare body me Dusmano se bachati hai. Aaj Kal to aur dar ho gya hai. Aaj Kal to koi  bhi kisi ko bhi nhi rukne dega apne Ghar. Me Kyo ki Kya pta Corona ho.waise hi hamari Immunity bhi ab kisi bhi anjan ko nhi rahane degi. Hamari body me,  hum hi nhi hamare sath hi immunty bhi fighting Kar rahi Corona se. Hum to kuchh. Nhi Kar rahe. To hame apne force apne army pe jayada bajat ke sath unke khyaal rakhna chahiye unko majboot karne ki jaroorat hai taki Corona jaise terrorist se lad sakey . Hume apne immunuty ko majboot karni hogi jisse hamari surakchha ho sake. Hamari immunuty hi Corona se lad sakti hai.hum nhi 

Thanks for reading

x
x

Wednesday, May 6, 2020

उदास जिन्दगी

इतने बड़े हो गए हैं लेकिन जब भी मन उदास होता है न और ज़िन्दगी परेशानियों का सबब बनती है
तो मां के गोद में सर रख कर सोने मन करता है

Thursday, April 30, 2020

मजदूर दिवस, मजदूरों कि हालात और इतिहास


मजदूर दिवस  क्यों मनाया जाता है, 2020

मजदूर का मतलब हमेशा गरीब से नहीं होता हैं, मजदूर वह ईकाई हैं, जो हर सफलता का अभिन्न अंग हैं, फिर चाहे वो ईंट गारे में सना इन्सान हो या ऑफिस की फाइल्स के बोझ तले दबा एक कर्मचारी. हर वो इन्सान जो किसी संस्था के लिए काम करता हैं और बदले में पैसे लेता हैं, वो मजदूर हैं.
हमारे समाज में मजदूर वर्ग को हमेशा गरीब इन्सान समझा जाता है, धुप में मजदूरी करने वालों को ही हम मजदूर समझते है. इसके विपरीत मजदूर समाज वह अभिन्न अंग है,
जो समाज को मजबूत व् परिपक्व बनाता है, समाज को सफलता की ओर ले जाता है. मजदूर वर्ग में वे सभी लोग आते है, जो किसी संस्था या निजी तौर पर किसी के लिए काम करते है और बदले में मेहनतामा लेते है. शारीरिक व् मानसिक रूप से मेहनत करने वाला हर इन्सान मजदूर है, फिर चाहे वह ईट सीमेंट से सना इन्सान हो या एसी ऑफिस में फाइल के बोझ तले बैठा एक कर्मचारी. इन्ही सब मजदूर, श्रमिक को सम्मान देने के लिए मजदूर दिवस मनाया जाता है.
अन्तराष्ट्रीय मजदूर दिवस को अन्तराष्ट्रीय कर्मचारी दिवस व् मई दिवस भी कहते है. इसे पूरी दूनिया में अन्तराष्ट्रीय तौर पर मनाया जाता है, ताकि मजदूर एसोसिएशन को बढ़ावा व् प्रोत्साहित कर सके. मजदूर दिवस 1 मई को पूरी दूनिया में मनाया जाता है, यूरोप में तो इसे पारंपरिक तौर पर बसंत की छुट्टी घोषित किया गया है. दूनिया के लगभग 80 देशों में इस दिन को नेशनल हॉलिडे घोषित किया गया है, कुछ जगह तो इसे मनाने के लिए कार्यक्रम भी आयोजित होते है. अमेरिका व् कनाडा में मजदूर दिवस सितम्बर महीने के पहले सोमवार को होता है. भारत में हम इसे श्रमिक दिवस भी कहते है. मजदूर को मजबूर समझना हमारी सबसे बड़ी गलती है, वह अपने खून पसीने की खाता है. ये ऐसे स्वाभिमानी लोग होते है, जो थोड़े में भी खुश रहते है एवं अपनी मेहनत व् लगन पर विश्वास रखते है. इन्हें किसी के सामने हाथ फैलाना पसंद नहीं होता है.
  • मजदूर दिवस का इतिहास
  • विश्व में मजदूर दिवस की उत्पत्ति
  • भारत में मजदूर दिवस समारोह
मजदूर दिवस का इतिहास (Labour Day History )
भारत में श्रमिक दिवस को कामकाजी आदमी व् महिलाओं के सम्मान में मनाया जाता है. मजदूर दिवस को पहली बार भारत में मद्रास (जो अब चेन्नई है) में 1 मई 1923 को मनाया गया था, इसकी शुरुआत लेबर किसान पार्टी ऑफ़ हिंदूस्तान ने की थी. इस मौके पर पहली बार   भारत में आजादी के  झंडा का उपयोग किया गया था. इस पार्टी के लीडर सिंगारावेलु चेत्तिअर ने इस दिन को मनाने के लिए 2 जगह कार्यकर्म आयोजित किये थे. पहली मीटिंग ट्रिपलीकेन बीच में व् दूसरी मद्रास हाई कोर्ट के सामने वाले बीच में आयोजित की गई थी. सिंगारावेलु ने यहाँ भारत के सरकार के सामने दरख्वास्त रखी थी, कि 1 मई को मजदूर दिवस घोषित कर दिया जाये, साथ ही इस दिन नेशनल हॉलिडे रखा जाये. उन्होंने राजनीती पार्टियों को अहिंसावादी होने पर बल दिया था.
विश्व में मजदूर दिवस की उत्पत्ति –
1 मई 1986 में अमेरिका के सभी मजदूर संघ साथ मिलकर ये निश्चय करते है कि वे 8 घंटो से ज्यादा काम नहीं करेंगें, जिसके लिए वे हड़ताल कर लेते है. इस दौरान श्रमिक वर्ग से 10-16 घंटे काम करवाया जाता था, साथ ही उनकी सुरक्षा का भी ध्यान नहीं रखा जाता था. उस समय काम के दौरान मजदूर को कई चोटें भी आती थी, कई लोगों की तो मौत हो जाया करती थी. काम के दौरान बच्चे, महिलाएं व् पुरुष की मौत का अनुपात बढ़ता ही जा रहा था, जिस वजह से ये जरुरी हो गया था, कि सभी लोग अपने अधिकारों के हनन को रोकने के लिए सामने आयें और एक आवाज में विरोध प्रदर्शन करें.
इस हड़ताल के दौरान 4 मई को शिकागो के हेमार्केट में अचानक किसी आदमी के द्वारा बम ब्लास्ट कर दिया जाता है, जिसके बाद वहां मौजूद पुलिस अंधाधुंध गोली चलाने लगती है. जिससे बहुत से मजदूर व् आम आदमी की मौत हो जाती है. इसके साथ ही 100 से ज्यादा लोग घायल हो जाते है. इस विरोध का अमेरिका में तुरंत परिणाम नहीं मिला, लेकिन कर्मचारियों व् समाजसेवियों की मदद के फलस्वरूप कुछ समय बाद भारत व अन्य देशों में 8 घंटे वाली काम की पद्धति को अपनाया जाने लगा. तब से श्रमिक दिवस को पुरे विश्व में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाने लगा, इस दिन मजदूर वर्ग तरह तरह की रेलियां निकालते व् प्रदर्शन करते है.
भारत में मजदूर दिवस समारोह (Labour Day Celebration)
श्रमिक दिवस को ना सिर्फ भारत में बल्कि पुरे विश्व में एक विरोध के रूप में मनाया जाता है. ऐसा तब होता है जब कामकाजी पुरुष व् महिला अपने अधिकारों व् हित की रक्षा के लिए सड़क पर उतरकर जुलुस निकालते है. विभिन्न श्रम संगठन व् ट्रेड यूनियन अपने अपने लोगों के साथ जुलुस, रेली व् परेड निकालते है. जुलुस के अलावा बच्चों के लिए तरह तरह की प्रतियोगितायें होती है, जिससे वे इसमें आगे बढ़कर हिस्सा लें और एकजुटता के सही मतलब को समझ पायें. इस तरह बच्चे एकता की ताकत जो श्रमिक दिवस मनाने का सही मतलब है, समझ सकते है.  इस दिन सभी न्यूज़ चैनल, रेडियो व् सोशल नेटवर्किंग साईट पर हैप्पी लेबर डे के मेसेज दिखाए जाते है, कर्मचारी एक दूसरे को ये मेसेज सेंड कर विश भी करते है. ऐसा करने से श्रमिक दिवस के प्रति लोगों की सामाजिक जागरूकता भी बढ़ती है.
इन सबके अलावा अलग अलग राजनीती पार्टियों के नेता जनता के सामने भाषण देते है, अगले चुनाव में जीतने के लिए ऐसे मौकों का वे सब भरपूर फायदा उठाते है. 1960 में बम्बई को भाषा के आधार पर 2 हिस्सों में विभाजित कर दिया गया था, जिससे गुजरात व् महाराष्ट्र को इसी दिन (1 मई) स्वतंत्र राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ था. इसलिए मई दिवस के दिन महाराष्ट्र दिवस व् गुजरात दिवस के रूप में क्रमशः महाराष्ट्र व् गुजरात में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. श्रमिक दिवस एक ऐसा अवसर है, जब दूनिया के सभी लोग मजदूर वर्ग की सच्ची भावना को समझ कर उसका जश्न मनाते है. यह एक ऐसा दिन है जब सभी श्रमिक को एक साथ सबके सामने अपनी ताकत, एकजुटता दिखाने का मौका मिलता है, जो ये दर्शाता है कि श्रमिक वर्ग अपने अधिकारों के लिए कितने प्रभावी ढंग से सकरात्मक रूप में संघर्ष कर सकता है.
यह मेरी भावना है उन लोगों के प्रति जो सेवक को गुलाम समझते है, उनका हक़ मारते है साथ ही उनका शोषण करते है. मजदूर तुच्छ नहीं है, मजदूर समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई है.

मजदूर दिवस २०२०

हर साल की तरह इस साल भी 1 मई को मजदूर दिवस (Labour Day) के तौर पर मनाया जायेगा और इस दिन सभी का अन्तराष्ट्रीय अवकाश होता हैं . २०२० मजदूरों के लिए काल बन कर आई है हजारों लोगों हजारों किलोमीटर दूर पैदल चलते को मजबूर हैं हम बड़े बुजुर्गो से सुना करते थे कि पहले लोग १००० किमी दूर पैदल चलते थे मुम्बई दिल्ली लोग पैदल जाते थे यकिन नहीं होता था हों भी तो कैसे हम ऐसे जहां मैं पैदा हुए हैं जो जहां पहले से बहुत ज्यादा अलग है।  हम इस युग में पैदा हुए हैं जिसमें बस बुलेट ट्रेन कि मेट्रो ट्रेन कि एरोप्लेन कि बात होती है यही हम देख है  गरीब से गरीब व्यक्ति भी आज मेट्रो ट्रेन में सफर कर रहे हैं हमें क्या पता था वो दिन भी देखने को मिल जायेगा जो कभी  पुरानी कहानी में सुनने को मिलती हैं । आज उस कहानी का हिस्सा बन चुका है। हम सब। 
  • हर कोई यहाँ मजदूर हैं चाहे पहने सूट बूट या मैला
    मेहनत करके कमाता हैं
    कोई सैकड़ा कोई  लाखों कमाता है
    हर कोई मजदूर ही कहलाता हैं
    चाहे अनपढ़ हो या पढ़ा लिखा

Thaughts of the day special for labour day.   
  Written by vinod kushwaha

Sach aur jhuth

 Jhuth insano ke bich ke ristey me sisey ki trh diwar bna deta hai Jo kabhi Mitata nhi.Agar aap sache insan hai kisi ke sath jhuth nhi bolte hai, to aapko is duniya me riste aur Dosto ki koi kami nhi hogi. Aur aap Long time tak friendship, relationship, ko nibhane me kamyab rahege. Sach duriyo ko Kam karta hai, aur jhuth najdikiya Kam krta hai 

X

पूर्वांचल एक्स्प्रेस

एसी कोच  से जनरल कोच  तक, जनरल  कोच से एसी  कोच  तक का सफर बताता है।  इस देश में कितनी विविधता है।  जनरल कोच में बैठ के अतीत को देख रहा था ६...