ओस की बूंदों से,
जाड़े के कोहरे से,
धूप में परछाई से,
बादलों में इंद्रधनुष से,
कब हमसे जुड़ जाते हैं,
कब छूट जाते हैं..
कुछ रिश्ते अपनी उम्र लेकर आते हैं |
कुछ अजीब से होते हैं ये रिश्ते,
बेवजह ही उलझते हैं,
बेवजह ही सुलझते हैं |
पूरे होकर भी अधूरे से,
कुछ अधूरे से पर पूरे से |
कभी बहते हैं गालों पर आंसूं से,
कभी खिलते हैं होठों पर मुस्कान से,
कुछ रिश्ते अपनी उम्र लेकर आते हैं |
आते हैं दबे पाँव,
न कोई दस्तक, न कोई आहट..
हम मशरूफ ही रहते हैं
इनके साथ कल पिरोने में,
पता नहीं चलता रेत की तरह,
कब हाथों से फिसल जाते हैं ,
पलक झपकते ही बीता पल बन जाते हैं..
हाँ…कुछ रिश्ते अपनी उम्र लेकर आते हैं |
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