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Wednesday, May 5, 2021
ग़रीबी में बिखरता बचपन
गरीबी बचपना आने ही नहीं देती है, बच्चे अपने परिवार का भार उठाने की मज़बूरी में बचपन में ही जवान हो जाते हैं और जवानी से पहले बूढ़े. हालाँकि ध्यान से देखो तो वह बच्चे भी अपने ही लगते हैं, उनमें भी अपने ही बच्चों का अक्स नज़र आता है. कुछ बच्चों के पास सबकुछ है और कुछ के पास है केवल लाचारी…
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पूर्वांचल एक्स्प्रेस
एसी कोच से जनरल कोच तक, जनरल कोच से एसी कोच तक का सफर बताता है। इस देश में कितनी विविधता है। जनरल कोच में बैठ के अतीत को देख रहा था ६...
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बर्फ़ बिखरने लगती है रातों को दरख़्तों पर ... सब आवाजें खामोशियों में कहीं गुम हो जाती हैं ... मन का शोर शराबा तब बहुत साफ सुनाई पड़ता है .....
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चूल्हे चौका, बिंदी, टीका, और घूंघट से निकलकर महिलाओं को। देश, नौकरी, राजनीति, समाज, पे बाते करने तक का सफर सदियों से आज तक एक मील नहीं चल पा...
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to WHAT IS SMILING DEPRESSION Usually, depression is associated with sadness, lethargy, and despair — someone ...
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मैं हर रोज देखता हूँ. सडक पर आते जाते शाम को किताबों को हाथ में लिए लाइब्रेरी या कोचिंग से वापस लौटते हुए लड़के लड़कियाँ को चेहरे पर उदासी ...
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बचपन की सुनहरी यादें और बचपन के खेल मनुष्य जीवन का सबसे सुनहरा पल बचपन है, जिसे पुनः जी लेने की लालसा हर किसी के मन में हमेशा बनी रहती ...
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इस तूफ़ान से गुज़रते हुए, बदल रही हैं चीजें । सीख जाओगे एक रोज़ तूफ़ानों में भी शांत रहना। कई लकीरें उभर आयेंगी चेहरे पर, और उन लकीरों में क...
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साहब, आँसू चीख रहें हैं साहब, आँसू चीख रहें हैं कोई तो आवाज़ सुनो मर न जाये भूख तड़पकर आसन वाले ताज सुने.. अन्तड़ियाँ हैं ...