भूत की स्मृतियाँ
वर्तमान का संघर्ष और बच्चों में भविष्य ।
पिता की उँगली पकड़ कर
चलना सीखते बच्चे
एक दिन इतने बड़े हो जाते हैं
कि भूल जाते हैं रिश्तों की संवेदना
और सड़क, पुल और बीहड़ रास्तों में
उँगली पकड़ कर तय किया कठिन सफ़र ।
बाँहें डाल कर
बच्चे जब झूलते हैं
और भरते हैं किलकारियाँ
तब पूरी कायनात सिमट आती है उसकी बाँहों में
इसी सुख पर पिता कुरबान करता है
अपनी पूरी ज़िन्दगी।
और इसी के लिए पिता
बहाता है पसीना ता ज़िन्दगी
ढोता है बोझा, खपता है फैक्ट्री में
पिसता है दफ़्तर में
और बनता है बुनियाद का पत्थर
जिस पर तामीर होते हैं
बच्चों के सपने
पर फिर भी पिता के पास
बच्चों को बहलाने और सुलाने के लिए
लोरियाँ नहीं होती
Happy Father's Day