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Friday, January 1, 2021

एक लड़का। मासुम सा

एक लड़का, उम्र कोई नौ दस साल,
टकटकी लगाए मुझे देख रहा था,
मैले कपडे, चेहरे पर ख़ामोशी की,
गहरी रेखाएं,
आँखों में गहरी दार्शनिकता,
मैं कुछ पल उसकी आँखों में डूबता उतरता रहा,
तभी उसका दायाँ हाथ हवा में उठा,
और दो उँगलियाँ उसके होंठों पर बैठ गयीं,
अगले पल उसके मुहँ से धुवाँ निकला,
और हाथ फिर से कंधे पर झूल गया,
उन उँगलियों में फंसी सुर्ख सी चिंगारी,
हंस रही थी,
मैंने ताज्जुब से (शायद) उसके चेहरे को देखा,
वही उदासी बरकरार थी,
मगर उसकी आँखों ने शायद,
मेरे चेहरे के भाव पढ़ लिए थे,
वो मुंह फेर कर बैठ गया,
मैं असहाय सा उसे देखता रहा,

काश...मैं उसकी नन्हीं उँगलियों से,
छीन कर वो  सिगरेट
थमा सकता एक पेंसिल और,
उसकी सूनी आँखों पर,
बिछा सकता ये आसमां का कैनवस,
जहाँ वो अपने मन को उंडेल सकता,
वो ढूँढ पाटा वो मासूमियत के निशाँ,
जो उसके चेहरे से नदारद थे...

Saturday, April 25, 2020

वो मासूम सा लड़का

उस गाँव कि गलियॉ. शाम को बहुत रंगीन. थी.2.2.शादियॉ जो थी  जो उस गांव मे
     शाम को करीब 5.बजे थे.. मै भी बहुत हरा थका हुआ अपने घर को जा रहा था, साईकल चलाने  का मन नहीं कर रहा था, उस गांव के पास इक आम का पेड़ था वहीं बैठ गया, इक पत्थर पे।  सोचा कुछ देर आराम, कर के चलते है। यहां से थोडी ही दुर पे हीं  मेरा गांव था।  कुछ दिनो से मै भी बहुत परेशान था. Life ko lekar सोच रहा था अपने आप पे कि किसी किसी को भगवान छोटी उम्र में ईतनी जिम्मेदारी क्यों दे देते हैं। 
तभी ईक अवाज आती हैं. मां  आज कोई नहीं आया चप्पल सिलवाने. मै मुड के देखा ईक  मासूमियत की चादर ओढ़े 13.14. वर्ष का लडका आखो में आसु लिये खडा हैं. और बोलता जा रहा है  मॉ आज. फिर  सब्जी नही बनेगा उसकी मां उसके तरफ चिन्ता भरी नजरों से देखने लगी ।  लड़का फिर बोला कोई नहीं मां मैं कल कहीं से भी सब्जी जारूर लाऊंगा मां जानती हो अपने गांव के प्रधान जी के खेत में जो काम करता है न उसको वो सब्जी देते हैं। मैं कल । चपपलच सिलने नहीं जाउंगा। मैं कल  वहीं जाऊंगा काम करने और कुछ पैसे भी चाहिए तेरे लिए दवा भी तो लाना है। फिर गोद में सिर रख कर सो गया मैं। उसकी ये जिम्मेदारी भरी बातों ने मेरे  खयालो कि समुद्र बना दिया.मै सोचने लगा  इक हम है जो हिम्मत ही हार जाते हैं मैं तो इससे  बड़ा हु, मेरे इससे  हलात भी  अच्छे हैं।  और ek positive energy le K ghar aaya.. उसकि हलात ने मेरी बेचैनियो को कम कर दिया।  सोचा शायद मैं दुनिया देखी नहीं न इस लिए बेचैन हो के परेसान हो जाते हैं  

पूर्वांचल एक्स्प्रेस

एसी कोच  से जनरल कोच  तक, जनरल  कोच से एसी  कोच  तक का सफर बताता है।  इस देश में कितनी विविधता है।  जनरल कोच में बैठ के अतीत को देख रहा था ६...