Wednesday, July 22, 2020

कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हू…

हर दिन अपने लिए एक जाल बुनता हूँ, कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ| हर रोज़ इम्तिहान लेती है जिंदिगी, हर रोज़ मगर मैं मोहब्बत चुनता हूँ| कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हू… बहुत दूर चला आया हूँ कारवाँ से, तन्हा रास्तों में एक हमसफ़र ढूंढता हूँ| कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ… अंधेरों में तुम्हारा चेहरा साफ़ दिखता है, तुम सामने होते हो जब आँख मूंदता हूँ| कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ… सिर्फ एहसास ए मोहब्बत बन जाता हूँ, जब तेरी ज़बीं को मैं चूमता हूँ| कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ… तेरे होते हुए सुखन मुमकिन नहीं, तेरे जाते ही अपनी कलम ढूंढता हूँ| कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ… सब हैरान हैं देख कर रक्स ए इश्क, मैं तेरी वफ़ा में ऐसा झूमता हूँ| कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ… दिल में आशियाने की आरजू लिए, मैं शहरों शहरों घूमता हूँ| कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…

No comments:

Post a Comment

बचपन बच्चों जैसा होना चाहिए

बरसात के दिनों में क्लास में बच्चों को घर जा के बरामदे और बंगले में बैठ के पढ़ने की बातें सुनते हुए हमने घर जा के त्रिपाल को बांस के खंभों म...