उस गाँव कि गलियॉ. शाम को बहुत रंगीन. थी.2.2.शादियॉ जो थी जो उस गांव मे
शाम को करीब 5.बजे थे.. मै भी बहुत हरा थका हुआ अपने घर को जा रहा था, साईकल चलाने का मन नहीं कर रहा था, उस गांव के पास इक आम का पेड़ था वहीं बैठ गया, इक पत्थर पे। सोचा कुछ देर आराम, कर के चलते है। यहां से थोडी ही दुर पे हीं मेरा गांव था। कुछ दिनो से मै भी बहुत परेशान था. Life ko lekar सोच रहा था अपने आप पे कि किसी किसी को भगवान छोटी उम्र में ईतनी जिम्मेदारी क्यों दे देते हैं।
तभी ईक अवाज आती हैं. मां आज कोई नहीं आया चप्पल सिलवाने. मै मुड के देखा ईक मासूमियत की चादर ओढ़े 13.14. वर्ष का लडका आखो में आसु लिये खडा हैं. और बोलता जा रहा है मॉ आज. फिर सब्जी नही बनेगा उसकी मां उसके तरफ चिन्ता भरी नजरों से देखने लगी । लड़का फिर बोला कोई नहीं मां मैं कल कहीं से भी सब्जी जारूर लाऊंगा मां जानती हो अपने गांव के प्रधान जी के खेत में जो काम करता है न उसको वो सब्जी देते हैं। मैं कल । चपपलच सिलने नहीं जाउंगा। मैं कल वहीं जाऊंगा काम करने और कुछ पैसे भी चाहिए तेरे लिए दवा भी तो लाना है। फिर गोद में सिर रख कर सो गया मैं। उसकी ये जिम्मेदारी भरी बातों ने मेरे खयालो कि समुद्र बना दिया.मै सोचने लगा इक हम है जो हिम्मत ही हार जाते हैं मैं तो इससे बड़ा हु, मेरे इससे हलात भी अच्छे हैं। और ek positive energy le K ghar aaya.. उसकि हलात ने मेरी बेचैनियो को कम कर दिया। सोचा शायद मैं दुनिया देखी नहीं न इस लिए बेचैन हो के परेसान हो जाते हैं
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