Tuesday, April 28, 2020

उनकी निगाहों से घायल हुए हम इस कदर

ना जाने कब आँखों-ही-आँखों में शरारत हो गई..... 
हमें पता ही ना चला कब हमें मोहब्बत हो गई..... 

कलतक रहते थे हम जो दोस्तों की भीड में, 
अब तो गुमसुम से रहने की हमें आदत हो गई,.... 

उनकी निगाहों से घायल हुए हम इस कदर, 
अब तो उनके सिवा ना कोई ख्वाहिश रह गई....

सुरूर-ए-इश्क का नासा हम पे एसा चढ़ा की
अब तो जिंदगी की आखरी वो साँस बन गई..... 

लिखने बैठे जब उनकी सोख अदाओं को हम 
मेरी लिखावट ना जाने कब कैसे गजल बन गई..... 

सुकून-ओ-चैन ना जाने मेरा कहीं खो सा गया, 
हालत-ए-इश्क देख मेरा दोस्तों को मेरी चिंता हो गई..... 

यार मेरे सारे पुछने लगे मुझसे बस एक ही सवाल, 
बता "प्रविण" तुझे भी क्या किसी से मोहब्बत हो गई......?? 

बडा छुपाया अपनी राज-ए-मोहब्बत को उनसे, 
पर ना जाने कब मेरी निगाहों में उसकी सूरत दिख गई....!! 

ना जाने कब आँखों-ही-आँखों में शरारत हो गई..... 
हमें पता ही ना चला कब हमें मोहब्बत हो गई..... 

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