रात को रात हो के जाना था
ख़्वाब को ख़्वाब हो के देखते हैं
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रेत पर रात ज़िंदगी लिक्खी
सुब्ह आ कर मिटा गईं लहरें
ख़्वाब को ख़्वाब हो के देखते हैं
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रेत पर रात ज़िंदगी लिक्खी
सुब्ह आ कर मिटा गईं लहरें
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ऐ रात मुझे माँ की तरह गोद में ले ले
दिन भर की मशक़्क़त से बदन टूट रहा है
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ये तन्हा रात ये गहरी फ़ज़ाएँ
उसे ढूँडें कि उस को भूल जाएँ
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ये तन्हा रात ये गहरी फ़ज़ाएँ
उसे ढूँडें कि उस को भूल जाएँ
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