हम मिले बेशक दो अजनबियों की तरह थे,
मगर तुम दिल में कब आ बसे मुझे पता न चला!
अपनी आँखों में राखी थी मैने इज्जत तुम्हारे लिए,
इसमें प्यार कब उमड़ आया मुझे पता न चला!
यूँ तो शराफत और सादगी लुभाती थी मुझको,
तेरी शरारतों पर कब फिसल गया पता न चला!
खुली जुल्फों से आती थी जो तुम्हारी भीनी-भीनी खुशबु,
जाने कब खामोश जंगल सी हुई मुझे पता न चला!
अधरों पर चमकती थी जो सूरज की लालिमा,
वो मदहोश लैब बेसुध क्यों हुए मुझे पता न चला!
तेरी उदासियां तेरी बेचैनीया तेरी परेशानियों
कब पता चला ये मुझे पता ही न चला
वजह चाहे जो हो तेरे इस घुट-घुट के जीने की,
मेरे खुश होने की वजह अब तुम हो शायद तुम्हें ये पता न चला!!
No comments:
Post a Comment