Saturday, June 20, 2020

क्यों आज कल


आज कल कुछ अजब सा  लगता है,

क्या समझ कर ना समझ ये मन होता है?

कभी कभी देख कर अनदेखा करते है,

कभी पाकर खोने का डर सताता है,


कभी जानकर अनजान बनते है,

कभी हस कर भी क्यों रोना आता है?

क्यों प्यार मे भी नफरत छुपी रहती है?

कभी जीत कर भी हारा हुआ लगता है,


कभी सोते हुए भी जागते रहते है,

कभी सपने देखना भी डर लगता है,

कुछ करने को जी करता पर रुक जाते है,

घर का दरवाजा खुला है, पर खुद को कैद मानते है,


आज कल कुछ अजीब सा लगता है........


कभी ये मन का भ्रम या अकेलापन लगता है,

कभी ये दुनिया बदली बदली सी लगती है,

कभी ये हालात की सीकर होना लगता है,


फिर कभी ये समय की खेल भी लगता है,

कैसा ये खेल? पास की गली तो सूनी सूनी लगती है,

सामने की सड़क तो सन्नाटे से भरी है,

दिन या रात सब एक जैसे लगते है,


फूलो की खुशबु महकती है, पर फूल खिलते नहीं है,

आज कल कुछ अजब सा लगता है...........


ये सब अजब से पल क्यों आते है?

दिल की धड़कने और बढ़ जाती है,


इधर देखो तो समय आँख मारता है,

उधर देखो तो सुबह का सूरज ढलने लगता है,

फिर अचानक क्यों हसीं आता है?

सायद जीवन को कोई कहलाता है,


सूरज जैसे धीरे धीरे तुम ढल जाओगे, ये सच है,

पर उसके पहले कुछ कर दिखाना है,

हर किसी को एक दुसरो मे खुशियाँ बाँटना है,

हर भूखे को खाना खिलाना है,


हर प्यासे की प्यास बुझाना है,

दुनिया मे चैन और अमन बनाए रखना है,

अधर्म को मिटाके धर्म का विजय तिलक लगाना है,

इंसान है  हम इंसानियत दिखलाना है,


कहने से नहीं करके दिखलाना है,

क्या हम सब तैयार है या और भी सोना है?

आज कल कुछ अजब सा लगता है............

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