Sunday, June 7, 2020

Childhood Golden Memories and Indoor and Outdoor Games

बचपन की सुनहरी यादें और बचपन के खेल 

मनुष्य जीवन का सबसे सुनहरा पल बचपन है, जिसे पुनः जी लेने की लालसा हर किसी के मन में हमेशा बनी रहती है. परंतु जीवन का कोई बीता पहर लौटकर पुनः वापस कभी नहीं आता, रह जाती है तो बस यादें जिसे याद करके सुकून महसूस किया जा सकता है.
अगर आज हम अपना बचपन याद करें तो केवल सुनहरी यादें ही याद आती है, ना किसी से बैर, न किसी से द्वेष, ना समय की फिक्र ना किसी चीज की चिंता, केवल हसना, खेलना, खाना-पीना, स्कूल और कुछ गिने चुने दोस्तों में जिंदगी सिमटी हुई सी बेहद ही खूबसूरत सी थी.
Childhood memories
जब हम छोटे थे अक्सर मन में ये खयाल आता था कि हम बड़े कब होंगे, पर आज पुनः उसी बचपन में लौट जाने का दिल करता है. तो चलिये आज हम आपको अपने इस आर्टिकल के द्वारा पुनः बचपन की यादों में लिए चलते है.
  1. बचपन में लोरी – आपको तो याद भी नहीं होगा जब आप चंद कुछ महीनों के होंगे तब शायद आप भी अन्य बच्चों की तरह आआ…. की आवाज करते सो जाते होंगे. उसके बाद आपको अपनी माँ या घर के किसी अन्य सदस्य के मुंह से लोरी सुनकर सोने की आदत हो गई होगी. मुझे लगता है कि अधिकतर भारतीय बच्चों द्वारा बचपन में सुनी गई पहली लोरी “चंदा मामा दूर के” ही होगी. जरा सोचिए कितना सुनहरा होगा वो समय जब आपको किसी चीज की समझ ना होते हुए भी आप लोरी में आने वाली उस आवाज से सो जाते होंगे.
  2. दादी नानी की कहानियाँ – आज के समय में ये चीज कम ही देखने मिलती है, समय की व्यस्तता के चलते ना दादी नानी बच्चों को कहानियाँ सुना पाती है, और ना ही टीवी और मोबाइल के बढ़ते प्रचलन के कारण बच्चे उसमें इंटरेस्ट ले पाते है. हम ये भी कह सकते है कि आज के इस डिजिटल युग में दादी-नानी की जगह मोबाइल ने लेली है.
  3. बचपन के खेल – स्कूल से आकर सबका ध्यान एक ही चीज में होता था, कि आज क्या खेल खेला जाएगा, कहीं पढ़ाई के लिए मम्मी जल्दी घर वापस ना बुला ले. बचपन में खेले जाने जाने वाले खेल कुछ इस प्रकार होते थे –
  • छुपन-छुपाई – यह बचपन में खेला जाने वाला सबसे आसान और मजेदार खेल था. इसमे एक साथी दाम देता था और अन्य सब छुप जाते थे, फिर कुछ देर रुककर वह अपने अन्य साथियों को ढूंढता और जो सबसे पहले आउट होता वही अगला दाम देता था. बचपन के इस खेल में कब स्कूल से लौटने के बाद खेलते हुए अंधेरा हो जाता था कुछ पता ही नहीं चलता था. बचपन का यह खेल वाकई में मनोरंजक था.
chupam chipai
  • नदी पहाड़ – नदी पहाड़ यह खेल भी अजीब था, जिसमें थोड़ी ऊंचाई वाले हिस्से पहाड़ और निचले हिस्से नदी के होते थे. जो बच्चा दाम देता था वह नदी में होता था और अन्य सभी पहाड़ पर, और जो नदी में होता था उसे पहाड़ पर मौजूद बच्चों को नदी में आने पर छूकर आउट करना होता था. बचपन में कॉलोनी की सड़कों पर यह नदी पहाड़ की उधेड्बुन भी अजीब सी खुशी दे जाती थी.
  • पिट्ठू – निमोर्चा जिसे कुछ लोग सितोलिया या पित्तुक के नाम से भी जानते है, बचपन में मेरा पसंदीदा खेल था. इस खेल को दो टीमों में विभाजित होकर खेला जाता था. इसमें कुछ पत्थर के टुकड़ों को एक के ऊपर एक रखा जाता था और जहां एक टीम का खिलाड़ी इन पत्थर के टुकड़ों को गेंद की मदद से कुछ दूरी पर खड़े होकर गिराता था, और फिर उसकी टीम उन पत्थर के टुकड़ों को पुनः सामने वाली टीम की गेंद से आउट होने से बचते हुए जमाती थी. अगर टीम यह पत्थर पुनः जमाने में कामयाब होती थी तो उसे एक पॉइंट मिल जाता था वरना यह पॉइंट सामने वाली टीम को मिलता था. और बचपन में इन्हीं पत्थरों को गिराने जमाने में शाम कब बीत जाती थी कुछ पता ही नहीं चलता था.

  • गिल्ली डंडा – बचपन का ये खेल भी बहुत ही अनूठा था इसे खेलने में समय कब निकल जाता और मम्मी कब आवाज लगाने लगती कुछ याद ही नहीं रहता था.

  • पतंग – उन रंग बिरंगी डोरियों में उड़ती रंग बिरंगी पतंगों से आसमान भी खूबसूरत सा लगने लग जाता था. वो अपनी पतंग को दूर आसमान में सबसे ऊपर पहुंचाने की चाह और इसके कटने पर दूर तक दौड़ लगाना भी अजीब था. अब आज जब थोड़ी दूर चलने पर सांस फूलने लगती है तब बचपन की वो पतंग के पीछे की लंबी दौड़ पुनः याद आने लगती है, जो चंद रुपयों की पतंग के लिए बिना थके लगाई जाती थी.
kite

गर्मी की छुट्टी में खेले जाने वालें खेल (Summers Time Games) –
स्कूल के समय जहां केवल शाम के कुछ घंटे खेलने के लिए मिलते थे वहीं गर्मी की छुट्टियों में पूरा दिन खेल के लिए ही होता था. पर गर्मियों की धूप के कारण घर से बाहर जाकर खुले में खेलने की भी मनाही थी, इसलिए गर्मियों के खेल भी कुछ अलग थे.
गर्मियों में खेले जाने वाले खेल इस प्रकार है –



  • केरम – गर्मी की छुट्टी आई नहीं की घर में केरम बाहर निकल आते थे. और इसे खेलते हुए कब दोपहर निकल जाती थी, पता ही नहीं चलता था.
Carom
  • राजा मंत्री चोर सिपाही – घर में चार चिटों पर बनाया हुआ यह खेल घंटों चलता था. इस चार चिट पर राजा, मंत्री चोर और सिपाही लिखा जाता था. और चार अलग – अलग व्यक्तियों को यह चिट उठानी होती थी, इसमें जिसके पास राजा की चिट होती वह कहता मेरा मंत्री कौन. अब मंत्री बने व्यक्ति को चोर और सिपाही का पता लगाना होता था. अगर वह सही चोर और सिपाही बता देता तो उसे मंत्री के 500 अंक मिल जाते वरना उसकी चिट चोर की 0 वाली चिट से बदल दी जाती. और राजा व सिपाही को 1000 व 250 अंक मिलते. इस प्रकार फिर अंत में टोटल कर खेल का विजेता घोषित किया जाता था.
Raja Mantri Chor Sipahi
  • ताश – ताश के उन 52 पत्तों से सत्ती सेंटर, चार सौ बीस, तीन दो पाँच और सात-आठ जैसे खेल खेलते हुए कब समय निकल जाता कुछ पता ही नहीं चलता. आज भी जब किसी सफर में ताश खेले जाते है तो बचपन की यादें ताजा हो उठती है.
  • क्रिकेट – बचपन में गर्मियों की सुबह में जल्दी उठना और सब दोस्तों को इकठ्ठा कर उजाला होने से पहले ही मैदान में पहुँच जाना भी अनूठा ही था. जहां परीक्षा के दिनों में पढ़ने के लिए आंखे खोलें नहीं खुलती थी वही क्रिकेट के लिए बिना किसी के उठाए ही उठना भी अजीब था.

  • लट्टू : भँवरा घुमाना और उसके लिए घंटो उस पर रस्सी को लपेटना. साथी का घूम जाए और हमारा नहीं, तो दिल में गुस्सा आता था, वो शाम को घर पर निकलता था. दिन रात प्रेक्टिस करके अगले दिन लट्टू घुमाकर दिखाए बिना चैन नहीं आता था.
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  • कंचे : कंचे खेलने से ज्यादा उसे जितने में मजा आता था, गिनते वक्त जितने ज्यादा कंचे हाथ में आते उतना दिल खुश हो उठता और जितने कम उतना ही उदास.
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  • घोड़ा बादाम छाई : जहाँ स्कूल की रिसेस होती और सब दौड़ कर मैदान में अपनी अपनी क्लास के बच्चो के साथ जगह बनाते और इस खेल को खेलते. जिसमे जोर जोर से चिल्लाते “घोड़ा बादाम छाई पीछे देखी मार खाई.”
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  • खो- खो : इसे तो सभी बहुत ध्यान से खेलते थे, क्यूंकि ये कॉम्पिटिशन में आने वाला खेल जो होता था. साल के शुरू में ही हर क्लास की टीम तैयार की जाती थी, जिसमे सभी बहुत मेहनत करते थे.
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  • गुलेल : निशाने बाजी का शौक बहुत भारी पड़ता था, पडौसी के घर के शीशे टूट जाते और वो घर लड़ने आ जाता था. फिर भी छिपते छिपाते गुलेल ले कर घर से भाग ही लेते थे.Gulel
  • सांप- सीढी / लूडो :यह एक ऐसे खेल जिन्हें हम अक्सर अपने माँ, पापा या भाई बहन के साथ खेलते. जब दिन भर के बाद पापा घर आते तो हम जिद्द करते. थके होने के बाद भी पापा बच्चो की मुस्कान देख पिघल जाते और खेलने लगते. कभी कभी तो जान बुझकर हार भी जाते. और आज बच्चे पापा के आते ही बस उनका मोबाइल ले लेते हैं और सर उठाकर अपने पापा से बाते भी नहीं करते.
Ludo Game
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बचपन वाकई में सुहाना था, काश की वो बचपन फिर लौट आए और हमारी जिन्दगी पुनः सभी टेंशन से मुक्त सुहानी हो जाए

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