अपना हिस्सा
अपने हिस्से में लोग
हिस्सा का गणित करते हैं
और जहां नहीं जाना चाहिए
तय नहीं करना चाहिए
उन वर्जित क्षेत्रों में
वे घुस जाते हैं
और बना लेते हैं
अपने लिए पूरा हिसाब.
वे जो
गंदे से बीनते है कचड़े
और वे जो
धूल उड़ाते हैं मारुती से
अपने हिस्से का धूप
रख लेते हैं अपने पास
फर्क की चादर में
पहला काला-कलूटा होकर
ताकता है
अपने हिस्से के आकाश को
दूसरा उड़ाता है गुब्बारा
सेंकते है सागर किनारे
अपने नर्म नाजुक देह को.
अभी हिसाब के खाते में
चंद्रमा नहीं आया है
ना ही सूरज
पेड़ तो नीलाम हो चुके हैं
और नदी
कसमसाती रहती है दिन-रात
अपने जंजीरों से खुलने के लिए.
अभी रोटी की बात
कुछ देर टल गई है
बात हो रही है मंगल की
और वे
अपने हिस्से का मंगल चाहते हैं
जहां सूखी रोटी की जगह
कॉकटेल पार्टी की हुड़दंग हो.
समय की घड़ी
अभी बूढ़ी नहीं हुई है
बूढ़ा गए हैं हम
जिसे अपने हिस्से का
न धूप
न पानी
न रोटी
ना ही फुटपाथ मिल पाता है.
हिस्सा का गणित करते हैं
और जहां नहीं जाना चाहिए
तय नहीं करना चाहिए
उन वर्जित क्षेत्रों में
वे घुस जाते हैं
और बना लेते हैं
अपने लिए पूरा हिसाब.
वे जो
गंदे से बीनते है कचड़े
और वे जो
धूल उड़ाते हैं मारुती से
अपने हिस्से का धूप
रख लेते हैं अपने पास
फर्क की चादर में
पहला काला-कलूटा होकर
ताकता है
अपने हिस्से के आकाश को
दूसरा उड़ाता है गुब्बारा
सेंकते है सागर किनारे
अपने नर्म नाजुक देह को.
अभी हिसाब के खाते में
चंद्रमा नहीं आया है
ना ही सूरज
पेड़ तो नीलाम हो चुके हैं
और नदी
कसमसाती रहती है दिन-रात
अपने जंजीरों से खुलने के लिए.
अभी रोटी की बात
कुछ देर टल गई है
बात हो रही है मंगल की
और वे
अपने हिस्से का मंगल चाहते हैं
जहां सूखी रोटी की जगह
कॉकटेल पार्टी की हुड़दंग हो.
समय की घड़ी
अभी बूढ़ी नहीं हुई है
बूढ़ा गए हैं हम
जिसे अपने हिस्से का
न धूप
न पानी
न रोटी
ना ही फुटपाथ मिल पाता है.
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