शूल की चिंता
अभी कहाँ छूटी है
बूढ़े बरगद की उस छाँव में
जहाँ मातम की हवा
सरसराते पत्तों को छेदकर
मेरी खिड़की से आ टकराती है.
अभी जीवन के सपने
टूटे तारों में कहीं अटके हैं
और वसंत की पंखुड़ियों ने
नदी के पुल से झांककर
लहरों में अपना चेहरा कहाँ ढूंढा है
अभी-अभी के छलावे ने
उलझा दिये हैं सारे गणित.
अभी शेष का अंतिम प्रहर
नहीं उतर सका है जीवन में
मिट्टी के खिलौनों से
मुन्ना कहाँ खेल पाया है ठीक तरह
और तुम कहते हो
छेद हो गया है मेरे वसंत में.
Vinod kushwaha
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