पतंगों की तरह हमें भी उड़ने का मौका मिला मौका
मिला ऊँची उड़ाने भरने का, मगर उड़ानों की डोर
हमेशा से ही किसी और के हाथों में रही, जब भी अपनी
मर्जी से ऊपर उड़ना चाहा खींच दी गई डोर और हम
कभी भी अपनी पसंद की उड़ान नहीं पा सके।
पर....
वे भूल गए कि जरा सी ढील जरूरी है ऊँची उड़ानों के
लिए और अपने पतंग को बचाए रखने के लिए। अगर
डोर को ज़रूरत से ज्यादा खिंची जाये तो वो कट जाती
है और जा गिरती है किसी और की छत पर जिसे कोई
और पा लेता है। पाकर खुश होता है, किसी और के
छत से वो पतंग दोबारा उड़ाए जाने लगती है, लेकिन
इस बार उड़ाने वाला ना कोई संकोच रखता है और ना
कोई ऐहतियात बरतता है क्यूंकि वो जनता है यह पतंग
उसकी खुद की खरीदी हुई नहीं बल्कि कट कर उसके
छत पर गिर जाने वाली पतंग है बिल्कुल बेसहारा और
कुछ देर बाद मन उबने के बाद उसी के हाथों पतंग फाड़
दी जाती है जिसे पाने वाला कुछ देर पहले बहुत खुश
था।
वक्त वक्त पर पतंगों को डील देनी पड़ती है ताकि वो
अपना आसमान, अपनी उड़ान और अपना मुक़ाम
हासिल कर सकें।
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