Tuesday, November 5, 2024

समाज से बिछड़े हुए लोगों

समाज में कुछ ऐसे लोग है। जो जमीन पर तो है पर समाज से मुलाकात नहीं हुई है। उनको पता ही नही समाज हैं क्या। कैसे काम करता है। उनको दुनिया की हकीक़त ही पता नहीं है। की समाज में क्या हो रहा कैसे रहा जाता है। मैने देखा है कुछ लोगों को। जिनको घर द्वार गांव समाज से कुछ लेना देना नहीं है। बस एक रूम का किराया ले के किसी शहर पे पड़े है वर्षों से। कुछ पैसे कमाते है। और फैमिली को परवरिश करते है। बस इतना ही पता है। फैमिली में कितने मेंबर है। उनके बीच क्या हो रहा। इससे बाहर की समाज कया है। इनको नहीं पता। ये एक कुएं के मेढक जैसे लोग हैं। जिनको लगता है । जो परिवार के बीच खयालात है। वही समाज है। उसी हिसाब से समाज चलता है। उसी हिसाब से समाज सोचता हैं। ऐसे लोग जब समाज में आते है। या ऐसे घर पे पले बढ़े लोग जब किसी दूसरे फैमिली या समाज से मिलते है। तो ये उस फैमिली और समाज से बहिष्कृत हो जाते है। क्यों कि इनकी मानसिकता ही सामाजिक नहीं होती। क्यों कि ये पहले से समाज को जानते नहीं है ये समाज के तौर तरीकों से वाक़िफ नहीं होते। न समाज से कभी मिले होते है। इनके लिए बाहर का समाज वही है जो घर का माहौल रहा है। एक कमरे के अंदर कैसा माहौल है। वहीं समाज है। उनके लिए ऐसे घर के बच्चे समाज में नहीं रह पाते। न किसी फैमिली के मेंबर के लायक रहते है। ये समाज को स्वीकार नहीं कर पाते। समाज को समझने के लिए समाज में उठना बैठना पड़ता है समाज का हिस्सा बनना पड़ता है। समाज के हिस्स बन के समाज को समझना। ये उतना ही जरूरी है जितना। शिक्षा, नौकरी। ये भी एक परिवारिश का अहम अंग है। पैसा कमा लेना इंसान को समझदार सबित नही करता। दो शब्द है। होनहार और समझदार , सामाजिक इंसान हमेशा समझदार होगा। होनहार होना स्किल और किताबी है। होनहार हमेशा होशियार दिखता। जबकि समझदार समाज को समझता है। और समझदारी दिखता है।

No comments:

Post a Comment

पूर्वांचल एक्सप्रेस

            V inod Kushwaha   हर नई पीढ़ी आती है बड़ी होती है और कोई एक्सप्रेस पकड़ती है दूर दराज शहर को चली जाती है। सदियों से ये हमारी...