Friday, September 29, 2023

अतीत जज़्बात आज और हम

मैं हर रोज देखता हूँ. सडक पर आते जाते 
शाम को किताबों को हाथ में
लिए लाइब्रेरी या कोचिंग से
वापस लौटते हुए लड़के लड़कियाँ को 
चेहरे पर उदासी
मन में हजारों सपने
जेब में कुछ फुटकर पैसे
घर की चिन्ता
भविष्य की अस्थिरता
और साथ हार जाने का डर  खो सा जाता हु।
दरअसल
जीत का जश्न और हारने के डर
के बीच की दूरी तय करते हुए लोगों को देखता हूं 
तो मैं अपने अतीत में खो जाता हु
अभी भी कसमकश दिमाग में चलने लगता हैं
कि। हम इस दौर से दूर आ गये हैं या इसी दौर में है।
उम्मीदें आज भी ताकती है । सपनो को सच होने के इन्तजार में। और हमें लगता है हम दुर निकल आये हैं
उस दौर से जिस दौड़ में हम उस छोर तक जाना चाहते थे। जहां जाना नामुमकिन सा है। हम दौड तो उस दौर से सुरु की थी। जब दौरन के लिए चपल ने थे। फिर भी शमिल हुए हम दौर में। क्यों कि दुर तक दौरना था मुझे। अनन्त तक । अब लगता है बहुत पीछे रह गए हम.।

Vinod kushwaha

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