अगर कोई और हक़ जताता है न तो मुझे जलन होने लगती हैं।
क्यों कि इकलौते होने के कारण जो भी चीज घर में आता था न तो उसपे सिर्फ मेरा हक़ होता था।
घर के हर चिज़ जमीन जयदाद सब पे बस मेरा हक़ है एसी आदत सी बनी हुई हैं बचपन से
कोई भाई नहीं है न बांटने वाला।
मुझे कोई ऐसी चीज पसन्द ही नहीं आती जिसपे कई लोगों का हक़ हों।
मै नहीं चाहता जो चिज मुझे पसन्द हों उसपे कई लोग हक़ जमाये।
जो चिज़ मुझे पसन्द हों उसे कोई छुवे भी मत
अगर मेरी पसन्द कि चीज को कोई बार बार छुता है न तो बहुत जलन होती मुझे।
अगर ये मेरे बस का नहीं होता कि सामने वाला को मना कर सकु तो।
मै ही उस चिज़ पर से अपना हक हटा लेता।
क्योंकि मैं नहीं चाहता जिसपे मैं हक़ जताऊं उसपे कई लोगों हक़ जताये।
ऐसे ही है हम। आदत जो हैं बचपन से।
चाहे प्यार हो इश्क हो मोहोबत हो। या दर्द हो। या तन्हाई हो या रूसवाई हो। कुछ भी हो।
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