7 ,8 साल पुरानी बात है के हम एक टीचर से मैथ्स पढ़ा करते थे।
मैंने एक दफा उनसे पूछा: सर अगर मुझे फीस में कुछ रिआयत मिल जाए तो मेरे लिए बड़ी आसानी रहेगी।
उन्होंने कहा: छुट्टी के बाद बात करेंगे ।
छुट्टी के बाद जब हम बैठे तो उन्होंने कहा अगर मैं सारी फीस ( Fees ) ही माफ कर दूं तो ?
मैंने कहा: सर इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है? उन्होंने कहा: लेकिन शर्त यह है कि आपने फिर उसको वापस करना होगा?
मैंने कहा: क्या वापस करना होगा?
उन्होंने कहा: आपने भी जिंदगी में किसी को इस तरह पढ़ा देना है।
मैंने कहा: बिल्कुल ठीक है अगर मुझे मौका मिला तो मैं जरूर पढ़ा दूंगा।
हम उस वक्त क्लास में 5 लड़के थे, हमारे मास्टर साहब कुछ टाइम जिंदा रहे फिर अल्लाह को प्यारे हो गए।
जनाजे के वक्त मैंने देखा तो मेरे बाक़ी 4 स्टूडेंट ( साथी ) भी रो रहे थे।
और हम पांचों को उसी दिन पता लगा कि फीस हम में से कोई भी नहीं दे रहा था।
इंसान की असल कमाई उसकी याद है, जिसके साथ वह दुनिया में जिंदा रहता है।
एक उस्ताद की हैसियत से हमें यह नहीं पता होता कि चंद साल बाद हमारी फिजिक्स और केमिस्ट्री किसी को याद नहीं रहती बल्कि वह रवैया याद रहता है जो हमने किसी के साथ अपनाया होता है।
This story is based on reality. Vinod kushwaha
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