Wednesday, March 31, 2021

बचपन अन्धविश्वास और हम

बचपन मे ,या लगभग जब तक पढ़ाई की ,यहां तक कि Msc कॉलेज तक ,जब कोई कागज,कॉपी,किताब जमीन पर गिर जाती थी तो उसे तुरंत उठा कर चूम कर माथे से लगा कर मेज पर रख लेते थे। यह स्वभावतः अपने आप बिना कुछ सोचे और तत्काल हो जाता था। अब भी हो जाता हैं।

बातचीत में अक्सर किसी बात पर जोर देने या अपनी बात का विश्वास दिलाने के लिए जब भी कसम खाई ,विद्या माँ की ही कसम खाई।

विद्या माँ के प्रति सम्मान और उनके अपमान से उपजे कोप से भय का प्रतीक  होता था ,यह कसम खाना और कॉपी किताब को चूमना। आज भी।  विद्या माँ का खौफ बरकरार है  ख़ास कर  जब कोई  school या कालेज का दोस्त विद्या माँ कि कसम दे तो हम सचाई उगल देते हैं। लोगों से सुना था विद्या माँ का अनआदर करने पे विद्या माँ रूठ जाती हैं। और चलीं जाती हैं।  

मैं कभी कभी  scientifically सोचा करता था कहीं ये बात झुठी तो नहीं। 
कई बार experiment भी किया बचपन में , पेन पे पैर रख के। कि देखें पढ़ना भुलते है या नहीं । ऐसा नहीं हुआं।  
और इसी experiment के बाद मेरी आदत ख़राब होती गई। कोपी पेन को सही से न रखने की। डर कम हो गया। और कालेज आते आते आदत इतना खराब हो गई। इतना कि कोपी खरीदने के अगले दिन cover पेज नहीं दिखता था और पेन का ढक्कन  morning se evening तक नहीं टीकता था।

कालेज में  आने के बाद सोच कि कुछ झुठी बातों का परताल न करना ही सही होता हैं।।  कम से कम एक विश्वास बना रहता। ज़िन्दगी में । 

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