और कोई मसला नहीं है
उसे अब मेरा नज़ला नहीं है
ये जो बदल के आया है बदन
भीतर का इसके बदला नहीं है
क्यों अदब से पेश आते हो तुम
ये कभी खुदसे भी मिला नहीं है
बारिशें में अक्सर बह गया ये
रंग इसका मगर धुला नहीं है
खाये जाती है इन्हें इनकी गैरत
मुझे किसी से कोई गिला नहीं है
चीखता फिरूँगा ग़ज़लें गलियों में
मेरा गला अभी छिला नहीं है
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