अकसर कुछ खो जाता है
कभी अधूरे सपने तो कभी उनका मज़मून.
'क्या देखा था.. कौन-कौन मिले थे'
कया करना था क्या कर रहे
कया बनना था क्या बन गये
..प्रश्न थोड़ी-थोड़ी देर में कौंधते हैं.
वैसे ही बचपन में साथ पढ़े
जब चेहरा बदलकर पन्द्रह बिस- वर्ष बाद मिलते हैं.
तो कुछ खो सा जाता हूँ...
'कहीं तुम वो तो नहीं', 'तुम्हें कहाँ देखा है' जैसे प्रश्न मन में अनायास घुस आते हैं.
..प्रश्न थोड़ी-थोड़ी देर में कौंधते हैं.
वैसे ही बचपन में साथ पढ़े
जब चेहरा बदलकर पन्द्रह बिस- वर्ष बाद मिलते हैं.
तो कुछ खो सा जाता हूँ...
'कहीं तुम वो तो नहीं', 'तुम्हें कहाँ देखा है' जैसे प्रश्न मन में अनायास घुस आते हैं.
इक अजीब सा कसमकश होने लगता हैं
जब हम उन्हें पहचानते हैं तो
हम अतीत में खो जाते हैं।
और हमारे दिमाग में यादों का बवंडर
उमड़ पड़ता हैं और चेहरे पे मुस्कान आ जाती हैं
हमारे अतीत के साथ खोये सपने भी वापस आ जाते हैं
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