आजकल बहुत दिनों बाद फिर एक बार दिल
उदास सा हो गया, न जाने क्यों?
ना जाने ये दर्द कैसा हैं जो हर बार
एक हवा के उस झोके की तरह से आता है
जो दिल को झकझोर देता हैं.
दिल में ना जाने क्यों एक डर सा बैठ जाता हैं
दिल को कितना भी समझाऊ
या कितना भी मनाऊं पर दिल कुछ समझने या
मानने को तैयार ही नहीं होता
बल्कि हर बार अपने दर्द के सैलाब को
मेरी आखो से निकलने वाले आसुओं में
तब्दील कर देता हैं.
ना जाने कैसा हैं ये दर्द हैं और ना जाने कब होगा
इसका निदान।
कब ये पनपा अब ये न जाने कब खत्म होगा ।
आखिर उनकी समुन्द्र जैसी आंखों ने मेरे आंखों को
समुन्द्र बना ही दिया 😔
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