जिसकी हरकतों से टीस सी होती है
उसी से रोज़ बातें करने को
बेचैन सा हों जाता हु
उसकी बेतुकी बातों में मै
जिंदगी के मायने ढूढंता फिरता हू
वो हर बार मुझसे मिलती है बेवजह
मैं हर मुलाकात की वजह ढूंढता फिरता हूँ |
उसके आंखों में देखकर अक्सर गुम सा जाता हु।
उसकी आखें ज्यादा सुन्दर है या होठ
मैं अक्सर तक तय नहीं कर पाता हूं ।
उसके झिल सी आंखों मै डुब सा बह जाता हू
जब भी वो पास से गुजरती हैं मैं हवा सा बह जाता हु।
मुझे नफरतें बहुत है उससे
और अक्सर उससे गुस्सा भी हों जाता हु ।
हु तो मैं बहुत सख्त पत्थर जैसा लेकिन
उसके छुते ही मोम सा पिघल जाता हु ।
क्या हम बताये उससे
उससे अपना प्यार भी जाता नहीं पाता हूं
जब वो आतीं हैं पास मेंरे मैं दरिया सा उफनाता हैं
जब वो खामूश होती हैं मैं बेचैन सा हों जाता हुं !
जब भी वो मुझसे लड़ती हैं
मैं कांच सा टुट जाता हु क्या मैं बताऊं
तुमसे क्यों मैं खामुश हो जाता हु ।
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