जब कई गाँवों से लोग निकलकर एक गाँव में
इकट्ठा होते रहते हैं तो वह शहर बन जाता है। जिसमें होती है ढेर सारी
नई और कुछ पुरानी इमारतें, जिन्होंने देखा होता है शहर का बचपन।
इन बूढी इमारतों ने देखा है शहर को बड़ा होते हुए, अपनी मासूमियत
खोते हुए। जैसे-जैसे शहर बड़ा होता रहता है, शहर का दिल और
छोटा होता रहता है। यह शहर आपको आधुनिक तो बना देगा, पर
इंसान नहीं रहने देता। यहां सच से ज्यादा झूठ चलता है, हकीक़त से
ज्यादा दिखावे का प्रदर्शन होता है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ बुराई ही
नजर आती है मुझे इन शहरों में, थोड़ी सी अच्छाई भी नजर आती है,
जिस पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। होते हैं कुछ अच्छे लोग,
जो संरक्षण करते हैं शहरों में इंसानियत का, मासूमियत का, ईमानदारी
का। ये अच्छे लोग इन अंधेर नगरियों में दीपक का काम करते हैं। इन
उम्मीदों के दीयों का काम आसान नहीं होता, शहरों में चलने वाली
समाज और बेदिल दुनिया की हवा इन्हें बुझाने का काम करती है।
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