मुझे याद है बचपन में पापा मुझे गाड़ी सिखाने
एक खाली मैदान में ले जाया करते थे..
हैंडल पकड़ कर एक-एक चीज़
बड़ी बारीकी से सिखाते थे मुझे,
सुकू से बैठते ही नहीं थे कभी,
मैं चाहे लाख कहूँ
"पापा छोड़ दो मैं चला लूंगा"
पर उन्होंने कभी मेरा हैंडल नहीं छोड़ा.....
हमेशा कहते थे ये कोई आम गाड़ी नहीं,
जिंदगी की गाडी है जो चलाना सिखा रहा हूँ तुझे.
अब बड़ा हो गया हूँ शायद मैं,
पापा मेरे पीछे अब सुकू से बैठ जाते हैं,
मैं ज़िन्दगी की गाड़ी चलाना सीख गया हूँ शायद।
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