Friday, March 4, 2022

रिश्तों की मनमर्जीया

हम मानते हैं इक पिढी बाद बहुत कुछ बदल जाता है हम जब बड़े हो जाते हैं तो हम अपने मर्जी से जिना चाहते हैं नहीं चाहते कोई रोक टोक करें यहां तक हम अपने बड़ों को पुरानी सोच वाले बता देते हैं। हर चिज हम अपनी मर्ज़ी से करने लगते हैं। लेकिन क्या उनका हमारे ऊपर कोई एहसान नहीं है जिन्होंने हमें पाल पोस कर बड़ा किया है  हम जिनके गोंद मे खेल कर बड़े हुये हैं मां बाप बहन रिस्तेदार या आस पड़ोस वाले वो जो अपने लोग कया उनका कोई हक नहीं है। हम पे। हक है उनके भी हम पे कुछ ख्वाब है जुड़े हमसे कुछ उम्मीद हैं कुछ सपने हैं मां बाप के हमसे जुड़ें जबसे हम पैदा हुए तब से
उनके भी कुछ पसन्द हैं हमारे लिए। क्या  कुछ उनके ही पसन्द से कर लें तो क्या बिगड़ जाता है। कोई भी चीज हों जैसे आपकी शादी के लिए लड़की ही क्यों न देखी जा रही हों। अगर उनको पसन्द है तो हमें भी हां कर देनी चाहिए इक मर्जी तो उनका भी हम पे चलें। भले ही आप लड़की देखे हों या नहीं फ़िर भी हां बोल देना चाहिए। मैं शायद बोल रहा हूं। आज कल ऐसा नहीं होता लडका लडकी जरूर इक दुसरे को देखते हैं। लेकिन हर जगह नहीं होता कुछ आज के जमाने में भी लड़के हैं जिनको लड़की बिन देखे ही हां बोलना पड़ता है। बहुत बुरा लगता है न। दुख होती हैं न लेकिन फिर भी तसल्ली के लिए इक बात पे आप गौर कर सकते हो। कि क्या वो जिनके अंचल कि छांव में हम आप बड़े हुवे हैं
उनकी पसंद हमारे लिए  इतना खराब भी तो नहीं हों सकता।  
उनको तो हमारी हर पसन्द पता है। हर ढंग पता है। 
रिश्तों की डोर रिश्तों से जुड़ती है तो मजबुत होती है
सुना है मैंने किसी बड़े से

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