एक पल के लिए मैं मान लेता हूँ
लाठी से सत्याग्रह आया था
लेकिन नमक की वह लाठी क्रूर नहीं थी,
तुमने उसी लाठी का नमक खाकर
आज परिभाषा बदल दी- की
"प्रजा की पीठ पर इतनी लाठियाँ बरसा दो
कि उसे समझ आ जाए
सरकार उनके माँगों से नहीं
पीठ पर पड़े निशानों से चलती हैं।"
ताकि फिर कोई अपना हक मांगने के
लिए सरकार के खिलाफ आवाज न उठायें
परन्तु सरकारें यह भूल रही है कि
इन्कलाब का वह रक्त आज भी
क्रन्तिकारी हृदय में दौड़ रहा है
ये लाठियाँ पीठ पर नहीं
पेट पर मारी जा रही हैं,
भविष्य में जिस दिन रोटी की तलाश में
भूख की आँच तेज़ हो जाएगी
उस दिन लाठी तुम्हारे शासन पर चलेगी
और हक़ छीनने का देशद्रोह तुम्हारे सर मढ़ा जाएगा
सरकारों ने इक नई तकनीक विकसित कर ली हैं
जिससे की हर हक मांगने वाला व्यक्ती देशद्रोही हो
जाता हैं ।
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