बर्फ़ बिखरने लगती है रातों को दरख़्तों पर ...
सब आवाजें खामोशियों में कहीं गुम हो जाती हैं ...
मन का शोर शराबा तब बहुत साफ सुनाई पड़ता है ...
कोई बातें करता है खुद से,किसी को तन्हाई रास आती है
तभी अचानक इक पुरानी याद ज़हन से निकल कर ...
बिस्तर के सामने वाली दीवार पर उभर आती है ...
इक ख़्वाब उलझा हुआ, इक इश्क़ बिखरा हुआ ...
कमरे की वो दीवार तब इक तस्वीर नज़र आती है
खिड़कियों पर जमने लगती है ओस धीरे धीरे ...
पलकों पर हौले हौले हल्की सी नींद उतर आती है .
बाहर के मौसम की अक्सर होती है खबर सबको.
मन के मौसम की हालत कहाँ किसी को नज़र आती है.
बर्फ़ बिखरने लगती है रातों को दरख़्तों पर ...
सब आवाजें खामोशियों में कहीं गुम हो जाती हैं ...
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